लम्हा-ए-फिकरिया |
मैं चाहता हूँ कि निजामें कुहन बदल डालूँ,
मगर ये बात फ़कत मेरे बस की बात नहीं।
उठो, बढ़ो, मेरी कौम के आम इन्सानों,
ये सबकी बात है, दो चार दस की बात नहीं।।
राजपूत कौम जिस का इतिहास रोशन व ताबनाक रहा है। आज जिन्दगी के हर शोबे में अपनी पहचान खो चुकी है। कल तक तमाम कौमों की सरपरस्त यह कौम आज आज़ाद हिन्दुस्तान में अपने वुजूद की लड़ाई लड़ने पर मजबूर है। ऐसा क्यों हुआ? वे कौन सी वुजूहात रहीं जिनकी बदौलत यह बहादुर कौम इस अन्जाम तक पहुंच गई?
इतिहास गवाह है कि दुनिया में कामयाबी के लिए चार ताकतों का होना ज़रूरी है।
(1) इल्म (शिक्षा) (2) दौलत (धन) (3) इत्तिहाद (एकता) (4) सियासत (राजनीति)
हमारी कौम के पास न इल्म है न दौलत न एकता, भाई ने भाई को तबाह किया है। अपनी तमाम दौलत व मिलकियत अपने ऐब, घमण्ड, नाकारापन, गुस्सा फुजूल खर्च में खोकर आज यह कौम अपने सुनहरे दौर को ढूंढती नज़र आ रही है। आपसी फूट, बेवजह के झगड़े फसाद, मुकदमों ने हमें तबाहोबर्बाद कर दिया है। शादी ब्याह फंक्शन में ग़ैर ज़रूरी रस्मों रिवाज दिखावे ने हमें बर्बादी के दरवाजे पर ला खड़ा किया है।
हमें यह सबक अपने खेतों में काम करने वाली दलित कौम से सीखना होगा जिसने कामयाबी के चारों उसूलों (इल्म, दौलत, इत्तिहाद, सियासत) को अपनाया और आपको भनक तक न लगने दी। हम घमण्ड के नशे में मदहोश रहे, बादशाहत हम से दूर और उनके करीब होती चली गई। सिंहासन बदल गया और वह हण्टर जो कभी हमारे हाथों की शान था उनके हाथों की शोभा बन गया। मुबारकबाद उस दलित कौम और उसके रहनुमाओं को जिन्होंने मुश्किल हालात के बावजूद अपनी मेहनत, लगन और सोच का वजह से एक नई तारीख लिख डाली। दुनिया में सिर्फ राजपूत कौम की कामयाबी का ग्राफ लगातार नीचे गिरा है, बाकी तमाम कौमों ने कुछ ना कुछ अपनी तरक्की के ग्राफ को ऊपर उठाया है। अभी भी वक्त है संभल जाओ समझ से काम लो।
किसी ने क्या खूब कहा है "अगर आप वह चाहते हो जो अपको अभी तक नहीं मिला तो आप वह कीजिये जो अभी तक आपने नहीं किया।" मैं अपील करना चाहता हूँ अपनी राजपूत कौम से जब एक दबी कुचली कौम जिसके पास न धन था न बल था और वह अपने मक़सद, बुलन्द इरादे कड़ी मेहनत, और सही सोच की वजह से तरक्की के इस मकाम तक पहुंच सकती हैं तो आप क्यों नहीं आपकी रगों में दौर करने वाले खून के अन्दर बादशाहत लिखी है ग़ुलामी नहीं। पहचानों अपने आप को और सोचो कौन हो तुम? तुम ही तो हो जिनके किस्सों से हिन्दुस्तान का इतिहास रोशन है। तुम ही तो हो जो हवाओं के रुख को मोड़ दिया करते थे। तुम वही तो हो जिनके घोड़ों की टापों की आवाज़ से दुश्मनो के दिल दहल जाया करते थे। जिनकी कहानियों से बच्चों के किरदार निखरते हैं। जिनके अटल फैसलों ने इंसाफ़ की नई मिसालें कायम की थी। तुम ही ने तो दुनिया को प्राण जाय पर वचन न जाये' का नारा दिया। उठो, बढ़ो मेरी कौम के बहादुर लोगों और उठा लो अपने मजबूत हाथों में। इल्मो इत्तिहाद की इन्कलाबी तलवार और जीत लो दौरे तरक्की की इस जंग को और फ़हरा दो झण्डा अपनी कामयाबी का पूरी कायनात में। यह वक्त सोचने का नहीं बल्कि कर गुज़रने का है। ये नामुमकिन नहीं बल्कि मुमकिन है। हाँ मुमकिन है...
बस इन्सान का हर चीज़ पे चल सकता हैं,
आदमी वक्त के धारों को बदल सकता है।।
आदमी पुर अज्म पहाड़ों को हिला सकता है।
हर फितने को चुटकी में मसल सकता है।।
ना सही दिल ही सीने में ना सही।
वरना आहों से तो पत्थर की पिंघल सकता है।
कौन कहता है के तक़दीर अटल होती है।
आदमी चाहे तो तक़दीर बदल सकता।
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